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चमत्कारिक तेल

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :252
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9417
आईएसबीएन :9789385151071

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सहजन का तेल


सहजन के विभिन्न नाम

हिन्दी सहजना, सुरजना, सहिंजना, संस्कृत- शिग्रु-शाकपत्र, श्वेत मरिच, बंगला- सजिना, सेमगा सोजना, मराठी- शेवगा, गुजराती- सरगवो, मारवाड्रीसहिंजणो, पंजाबी- सोहांजना, कन्नड़- नुगे, गुग्गल, मोचक, तामिल- मुंरुगाई, तेलुगु- मुलगे, मोचकमु, अंग्रेजी- Drumstick, Chirot, लेटिन- मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera)

यह वनस्पति जगत के मोरिंगेसी (Moringaceae) कुल में आता है।

यह मध्यम श्रेणी का वृक्ष होता है। इसकी ऊंचाई 15 से 30 फीट तक होती है। इसकी छाल शीशियों के डाट जैसी होती है। इसका काण्ड बहुत ज्यादा मोटा नहीं होता। इसकी काष्ठ मुलायम होती है। इसके पत्ते संयुक्त प्रकार के होते हैं। ये 18 इंच तक लम्बे तथा छोटी-छोटी पर्णिकाओं से युक्त होते हैं। ये पर्णिकायें (उपपत्र) आधा से एक इंच तक लम्बी होती हैं। पुष्प सफेद तथा मधुर सुगन्ध वाले होते हैं। ये लम्बी, रोयेंदार मंजरियों में लगते हैं। फल लम्बी डण्डी के समान फली के रूप में होते हैं। ये फलियां 18 इंच तक लम्बी होती हैं। प्रत्येक फली पर 9 धारियां होती हैं। ये हरी होती हैं। बीज 3 कोण वाले तथा सफेद होते हैं। जंगलों में सहजन की एक कड़वी जाति भी होती है। उसके बीज हल्के पीले रंग के होते हैं। सहजन के बीजों से संपीड़न विधि द्वारा एक पतला, स्वच्छ एवं परम उपयोगी तेल प्राप्त होता है जिसे Ber-oil कहते हैं। यह बेन-आयल घड़ी साफ करने के काम आता है। इसी प्रकार इसकी छाल से वाष्प आसवन की सहायता से एक उड़नशील तेल प्राप्त होता है। वह तेल राई के तेल के स्थान पर काम आता है तथा औषधीय एवं अनेक अन्य चमत्कारिक प्रयोगों में काम लिया जाता है।

आयुर्वेदानुसार सहजन की छाल का तेल हल्के पीले रंग का, विपाक में मधुर, पित्तनाशक, श्लेष्मानाशक, विषहर, ओजवर्द्धक नस्य में सिरदर्द नाशक, कृमिघ्न, प्लीहा वृद्धिशामक तथा यकृत के लिये हितकर है। यहां इसी के औषधीय प्रयोग लिखे गये हैं।

सहजन के तेल के औषधीय प्रयोग

सहजन एक दिव्य वनस्पति है, जिसके फल, फूल, पत्तियां, छाल तथा जड़, सभी कुछ परम लाभदायक हैं। इसी प्रकार इसका वह तेल जो कि इसकी छाल से वाष्प

आसवन द्वारा प्राप्त किया जाता है, वह भी परम उपयोगी है। इसी तेल के तथा बीजों के तेल के कुछ अति सरल एवं विशिष्ट औषधीय प्रयोगों को आगे लिखा जा रहा है-

व्रणों के शोथ पर- व्रण शोथ हो जाने की स्थिति में सहजना की ताजी छाल को पीसकर अथवा छाल के तेल को सम्बन्धित स्थान पर लगाया जाता है। इसके लगाने से त्वचा के उस भाग में रतवाहिनियां विकसित होती हैं। वहां पर श्वेत रतकणिकायें जमने अर्थात् एकत्रित होने लगती हैं। परिणामस्वरूप शोथ का शमन हो जाता है। व्रण शोथ पर तेल की अल्प मात्रा ही लगाना पर्याप्त है। थोड़ी देर में इस तेल को पोंछ देना चाहिये अन्यथा जलन होती है।

बेहोशी दूर करने हेतु- बेहोशी आ जाने की स्थिति में उसे दूर करने हेतु सहजन की छाल के तेल की अल्प मात्रा कण्ठ पर लगाने से लाभ होता है।

ज्वर आने पर- किसी भी प्रकार से ज्वर आने की स्थिति में 2 बूंद सहजन के बीजों का तेल बताशे में लेकर रोगी को दिया जाता है तथा ऊपर से एक गिलास अथवा आधा गिलास जल पिला दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप रोगी को पसीना आता है, पेशाब होती है तथा उसका ज्वर कम हो जाता है। इसे किसी वैद्य के निर्देशन में ही देना उचित होगा।

मुख की जड़ता, पक्षवध आदि में- छाल के तेल को नारियल के तेल में मिलाकर मालिश करने से लाभ होता है।

शिरोपीड़ा में- सिरदर्द होने की स्थिति में छाल के तेल की 2-2 बूंद मात्रा अंगुलियों के पौरों से कनपटियों पर मसलने से लाभ होता है। कुछ समय पश्चात् एक कपड़े अथवा रूई से कनपटियों को पोंछ लें।

मसूड़ों के शोथ अथवा दंतशूल में- मसूड़ों में शोथ होने अथवा दांतों में शूल होने की स्थिति में लगभग आधा चम्मच जीरे के चूर्ण में 4 बूंद सहजन की छाल का तेल मिलाकर उससे मंजन करने से लाभ होता है।

वातजनित शूल होने पर- देह के किसी भी भाग में वातजनित शूल होने पर 2 भाग सहजन का तेल तथा 10 भाग सरसों का तेल मिलाकर मालिश करने से शूल का शमन होता है।

नवीन कण्ठमाला रोग से- सहजन का तेल 1 भाग, देवदारु का तेल 4 भाग तथा राई का तेल 8 भाग मिलाकर, इस मिश्रण को नवीन कण्ठमाला पर लगाने से लाभ होता है।

हजन के तेल का विशेष प्रयोग

आमवात जनित शोथ में सहजन के बीजों के तेल में बराबर मात्रा में तिल का तेल मिला लें। इस मिश्रण को पारदर्शी बोतल में भरकर उसके ऊपर लाल पन्नी चढ़ाकर सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रख दें। इस बोतल को लकड़ी

के पाटिये पर रखें। बाद में इस बोतल को सहेज कर रख लें। इस तेल की मालिश वातजनित शोथ पर करने से त्वरित लाभ होता है। यही नहीं, शरीर के किसी भी भाग में वात प्रकोप के परिणामस्वरूप उत्पन्न शूल भी इस मालिश से दूर होता है।

सहजन के तेल का चमत्कारिक प्रयोग

सहजन को एक चमत्कारिक एवं रहस्यमय वृक्ष की संज्ञा दी गई है। इस पौधे के अनेक चमत्कारिक प्रयोग हैं। इस पौधे से प्राप्त तेल भी इतना ही दिव्य तथा चमत्कारिक प्रभाव देने वाला है। इसके द्वारा किये जाने वाले प्रयोगों से मनुष्य की अनेक प्रकार की समस्याओं का शमन होता है। इसके प्रयोग अत्यन्त सरल हैं, जिन्हें आसानी से किया जा सकता है। यहां पर इसके तेल के कुछ अति सरल प्रयोगों को हीं लिखा जा रहा है:-

> कई व्यक्तियों को प्रायः भूत-प्रेतों के स्वप्न आते हैं अथवा वे किसी अज्ञात भय से सदैव भयभीत रहते हैं। ऐसे सभी लोगों के लिये यह एक रामबाण प्रयोग है। इस प्रयोग के अन्तर्गत बराबर-बराबर मात्रा में सहजन के बीजों का तेल तथा अरण्डी का तेल मिला लें। यदि इन दोनों की मात्रा 50-50 ग्राम हो तो इस 100 ग्राम मिश्रण में लगभग 10 ग्राम कालीमिर्च पीसकर डाल दें। इस मिश्रण को इसी प्रकार रखा रहने दें। अब प्रतिदिन रूई की एक फूलबत्ती बनाकर इस मिश्रण में डुबोकर पीतल के बने एक दीपक पर रखकर संबंधित व्यक्ति जहां सोता हो, उस कमरे में संध्याकाल में जलायें। यह जितनी भी देर जले, उतना ही पर्याप्त है। इस प्रयोग को 40 दिन तक करने से इस प्रकार की पीड़ा समाप्त होती है।

> दीपावली एक ऐसा महापर्व है जब अधिकांश व्यक्ति माँ लक्ष्मी से धन-धान्य की कामना करते हैं, उन पर आने वाले सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति देने की याचना करते हैं। इसके लिये ऐसे प्रयोग भी करते हैं जिनसे माँ लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होकर साधक की समस्त कामनाओं को पूरा कर देती हैं। इसी प्रकार के उपयोगी प्रयोगों में एक सामान्य तथा अत्यन्त सरल प्रयोग सहजन के तेल द्वारा भी किया जा सकता है। दीपावली की रात्रि को मुख्यद्वार पर सहजन के बीजों के तेल में तिल का तेल मिलाकर इस मिश्रण का दीपक रात्रिपर्यन्त जलाने से उस घर में एक वर्ष तक नज़रादि नहीं लगती, घर की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है तथा घर की अनेक समस्यायें दूर होती हैं। यह एक सामान्य एवं अत्यन्त सरल प्रयोग लगता है किन्तु इसका लाभ आपको पूरा प्राप्त होता है। आस्था-विश्वास के साथ यह प्रयोग अवश्य करें !

> किसी पशु को नज़र लग जाने की स्थिति में यह प्रयोग परम लाभदायक है। पशुओं को नज़र लगने पर वे बहुत सुस्त हो जाते हैं। गाय-भैंस-बकरी आदि पशु दूध नहीं दत या बहुत कम देते हैं। वे उल्टी भी करते हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में एक

सफेद कोरे कागज पर अग्रांकित यंत्र को शनिवार के दिन बनायें। इसे काली स्याही से बनायें तथा बनाते समय मुख में कोई सुगन्धित पदार्थ चबाते रहें। इसे बनाते समय ऊनी आसन पर बैठे। एक बार की बैठक में ही 5-7 यंत्र बना लें ताकि एक सप्ताह तक कम से कम इस यंत्र का उपयोग किया जा सके। अब प्रतिदिन संध्या के समर बनाये हुये यंत्रों में से एक यंत्र लें। उस यंत्र पर सहजन के बीजों का तेल लगा दें तथा उसे अगरबत्ती का धुआं दिखायें। इसके उपरांत जिस पशु को नज़र लगी हो, उस पशु पर से यंत्र को 21 बार उसार कर थोड़ा सा कपूर जलाकर उस अग्नि से जला दें बनने वाली राख किसी झाड़ या गमले में डाल दें। ऐसा करने से सम्बन्धित पशु की समस्या दूर होती है। यंत्र इस प्रकार है-

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    अनुक्रम

  1. जीवन का आधार हैं तेल
  2. तेल प्राप्त करने की विधियां
  3. सम्पीड़न विधि
  4. आसवन विधि
  5. साधारण विधि
  6. तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
  7. नारियल का तेल
  8. अखरोष्ट का तेल
  9. राई का तेल
  10. करंज का तेल
  11. सत्यानाशी का तेल
  12. तिल का तेल
  13. दालचीनी का तेल
  14. मूंगफली का तेल
  15. अरण्डी का तेल
  16. यूकेलिप्टस का तेल
  17. चमेली का तेल
  18. हल्दी का तेल
  19. कालीमिर्च का तेल
  20. चंदन का तेल
  21. नीम का तेल
  22. कपूर का तेल
  23. लौंग का तेल
  24. महुआ का तेल
  25. सुदाब का तेल
  26. जायफल का तेल
  27. अलसी का तेल
  28. सूरजमुखी का तेल
  29. बहेड़े का तेल
  30. मालकांगनी का तेल
  31. जैतून का तेल
  32. सरसों का तेल
  33. नींबू का तेल
  34. कपास का तेल
  35. इलायची का तेल
  36. रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
  37. बादाम का तेल
  38. पीपरमिण्ट का तेल
  39. खस का तेल
  40. देवदारु का तेल
  41. तुवरक का तेल
  42. तारपीन का तेल
  43. पान का तेल
  44. शीतल चीनी का तेल
  45. केवड़े का तेल
  46. बिडंग का तेल
  47. नागकेशर का तेल
  48. सहजन का तेल
  49. काजू का तेल
  50. कलौंजी का तेल
  51. पोदीने का तेल
  52. निर्गुण्डी का तेल
  53. मुलैठी का तेल
  54. अगर का तेल
  55. बाकुची का तेल
  56. चिरौंजी का तेल
  57. कुसुम्भ का तेल
  58. गोरखमुण्डी का तेल
  59. अंगार तेल
  60. चंदनादि तेल
  61. प्रसारिणी तेल
  62. मरिचादि तेल
  63. भृंगराज तेल
  64. महाभृंगराज तेल
  65. नारायण तेल
  66. शतावरी तेल
  67. षडबिन्दु तेल
  68. लाक्षादि तेल
  69. विषगर्भ तेल

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